ग्वालियर, मध्यप्रदेश। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ में पदस्थ न्यायमूर्ति श्री जी.एस. अहलूवालिया 11 नवंबर से मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर पीठ में बैठेंगे। उनका मुख्यालय ग्वालियर में होगा। यह आदेश आज जारी हुआ।
लॉ जर्नल के मुताबिक न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया वर्ष 1988 में अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुए थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, एमपी, मुंबई, गुजरात, पंजाब और हरियाणा, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के अलावा, ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण, ऋण वसूली न्यायाधिकरण, केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण में पैरवी कर चुके हैं। उन्होंने उप-सरकारी अधिवक्ता, सरकारी अधिवक्ता और उप-महाधिवक्ता के रूप में काम किया। इसके अलावा लोकायुक्त/एसपीई के लिए स्थायी वकील, सीआईडी, नागपुर के लिए विशेष लोक अभियोजक भी रहे हैं। सिविल, आपराधिक, संवैधानिक और सेवा मामलों में वकालत की है।
विभिन्न आपराधिक मुकदमों का भी संचालन किया। आईएलआर एमपी सीरीज के मुख्य संपादक के रूप में भी काम कर चुके हैं। उन्हें 13 अक्टूबर 2016 को अतिरिक्त न्यायाधीश और 17 मार्च 2018 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया है।
कुछ चर्चित फैसले
जब वक्फ बोर्ड पर की टिप्पणी : जबलपुर हाईकोर्ट में एक केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने बुरहानपुर में स्थित मुगल बादशाह शाहजहां की बहू बीबी साहिब और नादिरशाह के मकबरे को वक्फ बोर्ड की संपत्ति न होने का फैसला दिया था। उन्होंने फैसले में कहा था कि जो इमारतें देश की धरोहर की श्रेणी में आती हैं, वे केंद्र सरकार के संस्कृति विभाग के अधीन होती हैं। सुनवाई के दौरान उन्होंने टिप्पणी की थी कि- “जिस तरह से देश की प्राचीन संपत्तियों को वक्फ बोर्ड अपने अधीन कर रहा है उसको देखते हुए ताजमहल और लाल किले को भी वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दी जाए।” वक्फ बोर्ड की मनमानियों के मद्देनजर उनकी यह टिप्पणी देशभर में चर्चा का विषय बनी थी।
पुलिस स्टाफ को 900 किमी दूर ट्रांसफर करो: एक अन्य मामले में उन्होंने अनूपपुर जिले के भालूमाड़ा पुलिस थाने के पूरे स्टाफ को “900 किलोमीटर दूरी पर स्थित स्थानों पर स्थानांतरित करने का आदेश दिया था।” आदेश में कहा था कि, “चूंकि अनूपपुर एक सीमावर्ती जिला है, इसलिए 900 किलोमीटर की दूरी जानबूझकर तय की गई है, ताकि वे एक दूसरे से दूर और अलग-अलग स्थानों पर रहें, ताकि वे षड्यंत्र रचने और सरकारी रिकॉर्ड में हेराफेरी करने से बच सकें।” यह आदेश एक व्यक्ति पर झूठा केस दर्ज करने तथा उसे थाने लाकर प्रताड़ना से जुड़ा था।